जलवायु परिवर्तन एक वास्तविकता है। प्लास्टिक का उपयोग अपरिहार्य लगता है। लेकिन, अगर कोई उपाय है तो क्या होगा?

कर्नाटक के मैसूरु की सीमा प्रसाद से मिलें, जिन्होंने हमारे दिनप्रतिदिन के जीवन में प्लास्टिक के उपयोग को कम करने का एक तरीका ढूंढ लिया है। प्लास्टिक के उपयोग के लिए उनका जवाब एक अकल्पनीय लौकी है। वह इस सब्जी की मोटी त्वचा से कई सामान जैसे कंटेनर, भंडारण बर्तन, फूलदान, पेन स्टैंड, लैंपशेड आदि बनाती है। उन्होंने अपने पति कृष्ण प्रसाद के साथ 2017 में अपना खुद का उद्यम कृषिकला लॉन्च किया। महिलाओं, बच्चों, कॉर्पोरेट कर्मचारियों, कारीगरों और किसानों को लौकी का उपयोग करने और उन्हें दिनप्रतिदिन सुंदर और सजावटी बनाने के लिए प्रशिक्षित किया जाता है। सीमा की उद्यमशीलता केवल टिकाऊ है, बल्कि इसका उद्देश्य जनजातीय और ग्रामीण महिलाओं की आजीविका बनाना है।

एक साधारण लौकी पर आमतौर से  किसी का ध्यान नहीं जाता  है; इस सब्जी की ज्यादा बिक्री नहीं होती है। 48 प्रकार की लौकीयां हैं जो दुनिया में विलुप्त होने के कगार पर हैं। यहां के किसान अब लौकी के सही मूल्य को समझते हुए इसे बड़ी संख्या में विकसित कर रहे हैं। बाजार में लौकी की वस्तुओं को बेचने से किसानों की अतिरिक्त आय में मदद मिली है और साथ ही उन्होंने महिलाओं के अधिकार को भी सशक्त बनाया है। कृषिकला द्वारा निर्मित अधिकांश वस्तुएं बाजार में लगभग 500 रुपये में बेची जाती हैं। सीमा की प्रेरणा तंजानिया और केन्या में एक गैरसरकारी संगठन था जिसने महिलाओं को लौकी के माध्यम से शिल्प बनाना सिखाया था। एक बार सीमा ने सब्जी से आइटम बनाने की कला सीखी, तो वह रुकी नहीं। सीमा का लक्ष्य पूरे कर्नाटक में अपने उद्यम को बढ़ावा देना है और धान, बांस और घास जैसी अन्य जैविक चीजों का उपयोग करके अपनी उद्यमशीलता का विस्तार करना है।

एक बार जब लौकी को काटा जाता है, तो उन्हें लगभग 45 दिनों तक सूखने के लिए छोड़ दिया जाता है। एक छोटा छेद तब बीज को हटाने के लिए बनाया जाता है और इसे रात भर भिगोया जाता है। त्वचा और अंदरूनी हिस्सों को फिर हटा दिया जाता है और बाद में कलाकृतियों को बनाने के लिए उपयोग किया जाता है। कृषिकाला अब प्राकृतिक रंगों का उपयोग अपनी वस्तुओं के लिए करना चाहती है ताकि उन्हें पूरी तरह से पर्यावरण के अनुकूल बनाया जा सके। उद्यमिता का भविष्य वास्तव में उज्ज्वल है।